जम्मू में स्थित माँ वैष्णो देवी की महिमा अपरम्पार है । जो भक्त्त अपनी मुरादें लेकर मैया के दाराबार में पहुँचते है । भक्त्त वत्सला माता अपने भक्तो को पुत्रवत स्नेह करती है और मुरादें पुरी करती है । कोई भी भक्त्त माँ के दरबार से निराश नही लौटता है । माँ वैष्णो देवी 'त्रिकुट पर्वत' पर महाकली लक्ष्मी, और महासरस्वती के तीन पिंडो के रूप में विराज करती है । जहा हर साल बहुत श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते है और कठिन चढाई चढ़ते है ।
पृथ्वी पर अनेको बार अशुरों के अत्याचार हुए और उनके अत्याचारों के बोझ से जब पृथ्वी धँसने लगी तब तब दिव्य रूप में देवी शक्तियों ने अवतार लिया और पृथ्वी को भार मुक्त किया है । एक बार माँ लक्ष्मी, माँ कली, और माँ सरस्वती ने त्रेता युग में दत्यो का अत्याचार का अंत करने के लिए और संत जानो की रक्षा करने के लिए अपनी समस्त शक्तियों से एक दिव्या कन्या को उत्पन करने का निशचय किया । उनके नेत्रों से निकली दिव्या ज्योति से एक कन्या प्रकट हुई उसके हाथ में त्रिशूल और ओ शेर पर सवार थी । उस कन्या ने तीनो महा शक्तियों के तरफ़ देखकर कहा - हे महा शक्तियों आपने मुझे क्यों उत्पन किया है मेरी उत्पति का क्या प्रयोजन है कृपा करके मुझे बताइए ।
तब तीनो महा देवियों ने कहा - हे कन्या धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए हमने तुम्हे उत्पन किया अब तुम हमारी बात मानकर दक्षिण भारत में रतनाकर सागर की पुत्री के रूप में जन्म लो । वहा तुम भगवन विष्णु के अंश से उत्पन होओगी आत्म प्रेरणा से धर्म हित का कार्य ।
महादेवियो की अनुमती लेकर ओ दिव्य कन्या उसी क्षण रतनाकर सागर के घर गई और उनकी पत्नी के गर्भ में स्थित हो गई । समयानुसार उस कन्या की उत्पति हुई । उस कन्या का मुखमंडल सूर्य के सामान अद्भुत और अलौकिक था । रतनाकर सागर के उस कन्या का नाम त्रिकुटा रखा । थोड़े ही दिनों में त्रिकुटा ने अपने दिव्य शक्तियों से सभी ऋषियों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया अर्थात सभी ऋषि जन उसे दिव्य अवतार मानने लगे । त्रिकुटा भगवान् विष्णु की बहुत निष्ट और लग्न से पूजा करती थी इसी कारन उसे सब लोग वैष्णवी कह कर बुलाते थे । कुछ दिन और बीत जाने के बाद त्रिकुटा ने अपने माता पिता की अनुमति लेकर ओ तप करने समुन्द्र तट पर चली गई । वहा साध्वी का वेश बनाकर एक छोटी सी कुटी में रहने लगी ।
उन्ही दिनों श्री राम की पत्नी सीता का हरण करके रावन ले गया था । सीता खोज करते हुए एक दिन श्री राम जी अपनी वानर सेना सहित वहा पधारे और उस दिव्य कन्या को तप करते हुए देखकर बोले - हे सुंदरी वह कौनसा कारन है अथवा वह कौनसा प्रोयोजन है जिस कारन तुम इतना कठोर तप कर रही हो । श्री राम के पूछने पर त्रिकुटा ने अपने नेत्र खोलकर देखा तो श्री राम जी अपने अनुज लक्ष्मण और वानर सेना सहित खड़े है । उन्हें देखकर त्रिकुटा के हर्ष के सीमा न रही । वह प्रसन्न होकर प्रभु को प्रणाम करने के उपरांत वह विनीत भावः से बोली - आपको पति रूप में प्राप्त करना ही मेरी तपस्या का कारन है । अत: मुझे अपनाकर मेरी तपस्या का फल प्रदान करने की कृपा करे । तब भगवान् श्री राम जी के कहा - हे सुमुखी इस अवतार में मैंने पत्नीव्रत होने का निसचय किया है । अत : इस जन्म में तुम्हारी अभिलाषा नही पूर्ण कर सकता किंतु मुझे प्राप्त करने के उद्देश्ये से तुमने कठिन तप किया है इसलिए तुम्हे ये वचन देता हु की की सीता सहित लंका से लौटते समय हम तुम्हारे पास भेष बदलकर आयेंगे और उस समय तुमने हमें पहचान लिए तो हम तुम्हे अपना लेंगे ।
श्री राम जी अपनी सेना सहित लंका की ओर चले गए । लंका में उनका रावन से भीषण सग्राम हुआ और अंत में रावन की मृत्यु हो गई । उसके बाद सीता की अग्नि परीक्षा लेकर पुष्क विमान पर सवार होकर आ रहे थे तब उन्होंने विमान रोक कर सीता और लक्षमण से बोले - तुम येही ठहरो हम थोडी देर में आते है उसके बाद श्री राम जी ने एक वृद्ध साधू का रूप धारण कर त्रिकुटा के सामने पहुचे, त्रिकुटा उन्हें पहचान ना सकी तब श्री राम जी अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर बोले- हे कन्या पूर्व कथा नुसार तुम परीक्षा में असफल रही अत : तुम कुछ काल तक तप करो कलयुग में जब मेरा 'कालिका अवतार' होगा तब तुम मेरी सहचरी बनोगी, उस समय उत्तर भारत में मानिक पर्वत पर तीन शिखर वाले मनोरमा गुफा में जहा तीन महा शक्तियो का निवास है वहां तुम भी अमर हो जाओगी। तप करो महाबली हनुमान तुम्हारे पहरी होंगे तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर तुम्हारी पूजा होंगी । तुम 'वैष्णो देवी' के नाम से तुम्हारी जगत महिमा जगत विख्यात होंगी ।
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